छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका !….नियम और क़ानून का पालन करें सुखी रहें |
IPC Section 420: जीवन में प्रामाणिकता का होना बहुत आवश्यक होता है | अविश्वसनीय मनुष्य कभी किसी कार्य में पूर्ण रूप से सफल नहीं होता |
एक बहुत पुरानी कहावत है कि काठ की हांडी दूसरी बार आग पर नहीं चढ़ पाती है ठीक इसी प्रकार आप यदि एक बार किसी को धोखा देकर सफल हो भी जाते हैं तो आप दूसरे अवसर खो देते हैं |
धोखा या छल करना एक बहुत ही कमजोर व्यक्तित्त्व की निशानी है ,आध्यात्मिक दृष्टि से यह बहुत बड़ा पाप है ही ,साथ ही कानून की दृष्टि में भी यह एक दंडनीय अपराध है |प्रत्येक दृष्टि से यह अनुचित होते हुए भी आज का इन्सान बिना किसी भय के दुनियादारी में सफल होने के लिए इसे आवश्यक मानने लगा है और दूसरों से धोखा या छल करता है अतः मैं इसे एक मनोरोग (manorugna) भी कहना चाहता हूँ |
सरल व्यक्ति अवसाद में नहीं जा सकता ,अवसाद में कठिन व्यक्ति ही जाता है ,छल कपट कठिन व्यक्तित्त्व की निशानी है । सामान्यतः उदासीनता ,निराशा और अंतरोन्मुखता को अवसाद समझा जाता है किंतु वह ज्यादा गहरा नहीं होता थोड़ी सी प्रेरणा से उससे बाहर आया जा सकता है ।
अत्यधिक उत्साह ,अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा और अत्यधिक बहिर्मुखता और आत्ममुग्धता बहुत गहरा अवसाद है जिससे बाहर आना बहुत कठिन होता है । क्यों कि इस तरह के अवसाद की स्वीकृति बहुत कठिन होती है । छलिया और कपटिया व्यक्तित्त्व में ये लक्षण बहुतायत देखे जाते हैं । इस तरह के अवसाद का पता लगाना भी बहुत कठिन होता है और उस रोग का इलाज़ लगभग नामुमकिन हो जाता है जिस रोग को रोग ही न समझा जाए ।
IPC Section 420 क्या कहता है?
कानून बाहरी छल को समझता है और उसके आधार पर दंड का निर्धारण करता है । छल के अपराध का गठन (कॉन्स्टीट्यूट) करने वाले महत्वपूर्ण तत्वों में से एक धोखा है। धोखा देने का अर्थ है, किसी व्यक्ति को किसी असत्य तत्व में विश्वास दिलाना कि वह सत्य है या किसी व्यक्ति को शब्दों या आचरण द्वारा सत्य को असत्य बना देना।
ipc section 420 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति छल करता है और इस तरह बेईमानी से दूसरे व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है या एक मूल्यवान सुरक्षा के पूरे या किसी हिस्से को बनाता है, बदल देता है या नष्ट कर देता है, या कुछ भी जो हस्ताक्षरित या मुहरबंद है, और जो एक मूल्यवान सुरक्षा में परिवर्तित होने में सक्षम है, तो ऐसे अपराधी को किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाता है , जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी हो सकता है। ipc section 420 छल का एक उग्र रूप है।
IPC Section 420: हमारा असली चेहरा क्या है ?
छल या माया के कृत्रिम स्वभाव के कारण हम समाज में एक मुखौटा लगाकर जी रहे हैं ,रोज मुखौटे बदलते हैं ,मुखौटे पहनने के हम इतने आदी हो गए हैं कि हमारा असली चेहरा क्या है ? हम वो भी भूल चुके हैं |
शास्त्रों में कहा गया है कि मायाचारी व्यक्ति वर्तमान में भले ही छल कपट करके खुद को बहुत होशियार या सफल मानता फिरे , दूसरों को ठग कर बेवकूफ बनाता रहे किन्तु इस मायाचारी प्रवृत्ति का फल तिर्यंच गति होता है अर्थात् इसके फल से मनुष्य अगले जन्म में पशु पक्षी बन कर बहुत दुख उठाता है । ऐसा करके खुद को ठगता है और मन ही मन प्रसन्न होता है कि मैंने दूसरे को ठग लिया ।
धर्म और अध्यात्म कहता है कि मनुष्य के सभी कार्य पूर्व के पुण्य उदय से सिद्ध होते हैं मायाचारिता से नहीं । छल करने वाला मनुष्य अपनी प्रामाणिकता खो देता है । आपके व्यक्तित्व पर कोई भरोसा नहीं करता ।
वर्तमान में मायाचारिता को एक गुण समझा जा रहा है ।सरलता को वर्तमान समाज में मूर्खता कहा जाने लगा है । यह अशुभ संकेत है ।
IPC Section 420: खुद दण्डित होता है धोखा देने वाला
वास्तविकता यह है कि मायाचारी व्यक्ति को पूरी दुनिया टेढ़ी दिखाई देती है , वह हमेशा सशंक और तनाव में रहता है । मन में चोर भरा हो तो पूजा ,पाठ , अभिषेक , ध्यान ,सामायिक से भी शांति नहीं मिल सकती । क्यों कि मायाचारी यह सब भी माया और छल के वशीभूत होकर करने लगता है ।हमें यह समझना होगा कि आंख में पड़ा हुआ तिनका , पैर में घुसा हुआ कांटा ,रुई में छुपी हुई आग से भी ज्यादा खतरनाक है दिल में छिपा हुआ कपट और पाप ।
ईमानदारी और निश्छलता की सबसे बड़ी प्रामाणिकता यह है कि प्रत्येक बेईमान इन्सान को भी एक ईमानदार साथी की अपेक्षा होती है क्यों कि खुद के साथ छल किसी को भी स्वीकार नहीं है |
छलिया व्यक्ति छल को ही एक मात्र खुद के विकास का साधन मानने लगता है, उसे लगता है कि यदि वह छल नहीं करेगा तो वह पिछड़ जाएगा । उसका सारा विकास रुक जाएगा । इसीलिए असफलता के भय से वह सरलता और सहजता से सम्पन्न हो सकने वाले कार्यों को भी छल और माया से सम्पन्न करना चाहता है । उसे इस अवसाद से निकालना बहुत कठिन होता है क्यों कि वह इसे बुरा ही नहीं समझता है ।दरअसल वह एक ऐसा मनुष्य बन जाता है जो उसी डाल को काट रहा होता है जिस पर वह स्वयं बैठा है |
दूसरों को धोखा देने के फेर में
हम हर बार खुद से फ़रेब कर बैठे
IPC Section 420: दोष कभी गुण नहीं बन सकता
छल-छद्म राजनीति का भी एक प्रमुख अंग माना जाता है,किन्तु स्वस्थ्य लोकतंत्र की स्थापना में वह एक बहुत बड़ी बाधा है ,अतः इसे प्रमुख अंग न कहकर प्रमुख दोष कहना चाहिए | गलत को गलत नहीं कहना भी न्याय और नीति के साथ एक बहुत बड़ा छल है | कोई दोष कितना भी अधिक क्यों न हो वह कभी गुण संज्ञा को प्राप्त नहीं हो सकता |
जिस दिन मनुष्य को यह विश्वास दिला दिया जायेगा कि जिसे वह दूसरों के साथ छल समझ रहा है दरअसल वह खुद की शांति और विकास के साथ ही बहुत बड़ा धोखा है ,शायद तब वह इस पर नियंत्रण करने का सार्थक प्रयास करेगा |
– Prof Anekant Kumar Jain